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फायदे का सौदा है मूंग की खेती, जानिए बुवाई करने का सही तरीका

फायदे का सौदा है मूंग की खेती, जानिए बुवाई करने का सही तरीका

दलहनी फसलों में मूंग की खेती अपना एक अलग ही स्थान रखती है. मूंग की फसल को जायद सीजन में बोया जाता है. अगर किसान फायदे का सौदा चाहते हैं, तो इस सीजन में बूंग की फसल की बुवाई कर सकते हैं. 

मार्च से लेकर अप्रैल के महीने में खेत खुदाई और सरसों की कटाई के बाद खाली हो जाते हैं. जिसके बाद मूंग की बुवाई की जाती है. एमपी में मूंग जायद के अलावा रबी और खरीफ तीनों सीजन में उगाई जाति है. 

यह कम समय में पकने वाली ख़ास दलहनी फसलों में से एक है. मूंग प्रोटीन से भरपूर होती है. जो सेहत के लिए काफी फायदेमंद होती है. इतना ही नहीं यह फसल खेत और मिट्टी के लिए भी काफी फायदेमंद मानी जाती है. 

मूंग की खेती जिस मिट्टी में की जाती है, उस मिट्टी की उर्वराशक्ति बढ़ जाती है. मूंग की सबसे बड़ी खासियत यह है कि, इसकी फलियों की तुड़ाई के बाद खेत में हल से फसल को पलटकर मिट्टी में दबा दिया जाए, तो यह खाद का काम करने लगती है. अगर अच्छे ढंग से मूंग की खेती की जाए तो, किसान इससे काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं.

पोषक तत्वों से भरपूर मूंग

जैसा की हम सबको पता है कि मूंग में प्रोटीन की भरपूर मात्रा होती है. लेकिन इसमें अन्य पोषक तत्व जैसे पोटैशियम, मैंग्निशियम, कॉपर, जिंक और कई तरह के विटामिन्स भी मिलते हैं. 

अगर इस दाल का सेवन किया जाए तो, इससे शरीर में पोषक तत्वों की कमी को पूरा किया जा सकता है. अगर किसी मरीज को इस दाल का पानी दिया जाए तो, इससे स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से राहत दिलाई जा सकती है. इसके अलावा मूंग दाल डेंगू से भी बचाने में मदद करती है. 

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इन जगहों पर होती है खेती

भारत के आलवा रूस, मध्य अमेरिका, फ़्रांस, इटली और बेल्जियम में मूंग की खेती की जाती है. भारत के राज्यों में इसके सबसे ज्यादा उत्पान की बात करें तो, यूपी, बिहार, कर्नाटक, केरल और पहाड़ी क्षेत्रों में किया जाता है.

क्या है मूंग की उन्नत किस्में

मूंग के दाने का इस्तेमाल दाल के रूप में किया जाता है. मूंग की लिए करीब 8 किलोग्राम नत्रजन 20 किलोग्राम स्फुट, 8 किलोग्राम पोटाश और 8 किलो गंधक प्रति एकड़ बुवाई के समय इस्तेमाल करना चाहिए. 

इसके अलावा मूंग की फसल के उन्नत किस्मों का चयन का चुनाव उनकी खासियत के आधार पर किया जाना चाहिए.

  • टाम्बे जवाहर नाम की किस्म का उत्पादन जायद और खरीफ सीजन के लिए अच्छा माना जाता है. इसकी फलियां गुच्छों में होती है. जिसमें 8 से 11 दानें होते हैं.
  • जवाहर मूंग 721 नाम की किस्म तीनों सीजन के लिए उपयुक्त होती है. इसके पौधे की ऊंचाई लगभग 53 से 65 सेंटीमीटर होती है. इसमें 3 से 5 फलियां गुच्छों में होती है. जिसमें 10 से 12 फली होती है.
  • के 851 नाम की किस्म की बुवाई के लिए जायद और खरीफ का सीजन उपयुक्त होता है. 60 से 65 सेंटीमीटर तक इसके पौधे की लंबाई होती है. एक पौधे में 50 से 60 फलियां होती हैं. एक फली में 10 से 12 दाने होते हैं. इस किस्म की मूंग दाल के दाने चमकीले हरे और बड़े होते हैं.
  • एमयूएम 1 नाम की किस्म गर्मी और खरीफ दोनों सीजन के लिए अच्छी होती है. इसके पौधों का आकार मीडियम होता है. एक पौधे में लगभग 40 से 55 फलियां होती हैं. जिसकी एक फली में 8 से 12 दाने होते हैं.
  • पीडीएम 11 नाम की किस्म जायद और खरीफ दोनों सीजन के लिए उपयुक्त होती है. इसके पौधे का आकार भी मध्यम होता है. इसके पौधे में तीन से चार डालियां होती हैं. इसकी पकी हुई फली का आकार छोटा होता है.
  • पूसा विशाल नाम की किस्म के पौधे मध्यम आकार के होते हैं. इसकी फलियों का साइज़ ज्यादा होता है. इसके दाने का रंग हल्का हरा और चमकीला होता है.
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कैसे करें जमीन तैयार?

खेत को समतल बनाने के लिए दो या तीन बार हल चलाना चाहिए. इससे खेत अच्छी तरह तैयार हो जाता है. मूंग की फसल में दीमग ना लगे, इसलिए इसे बचने के लिए क्लोरोपायरीफ़ॉस पाउडर 20 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिट्टी में मिला लेना चाहिए. इसके अलावा खेत में नमी लंबे समय तक बनी रहे इसके लिए आखिरी जुताई में लेवलर लगाना बेहद जरूरी है.

कितनी हो बीजों की मात्रा?

जायद के सीजन में मूंग की अच्छी फसल के लिए बीजों की मात्रा के बारे में जान लेना बेहद जरूरी है. इस सीजन में प्रति एकड़ बीज की मात्रा 20 से 25 किलोग्राम तक होनी चाहिए. इसके बीजोपचार की बात करें तो उसमें 3 ग्राम थायरम फफूंदनाशक दवा से प्रति किलो बीजों के हिसाब से मिलाने से बीज, भूमि और फसल तीनों ही बीमारियों से सुरक्षित रहती है.

फसल की बुवाई का क्या है सही समय?

मूंग की फसल की बुवाई खरीफ और जायद दोनों ही सीजन में अलग अलग समय पर की जाती है. बार खरीफ के सीजन में बुवाई की करें तो, जून के आखिरी हफ्ते से लेकर जुलाई के आखिरी हफ्ते तक इसकी बुवाई करनी चाहिए. 

वहीं जायद के सीजन में इस फसल की बुवाई मार्च के पहले गते से लेकर अप्रैल के दूसरे हफ्ते तक बुवाई करनी चाहिए.

क्या है बुवाई का सही तरीका?

मून की बुवाई कतारों में करनी चाहिए. जिसमें सीडड्रिल की मदद ली जा सकती है. कतारों के बीच की दूरी कम से कम 30 से 45 सेंटीमीटर तक और 3 से 5 सेंटीमीटर की गहराई में बीज की बुवाई होनी चाहिए. 

अगर एक पौधे की दूरी दूसरे पौधे की दूरी से 10 सेंटीमीटर पर है, तो यह अच्छा माना जाता है. 

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कैसी हो खाद और उर्वरक?

मूंग की फसल के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल करने से पहले मिट्टी को चेक कर लेना जरूरी है. इसमें कम से कम 5 से 12 टन तक कम्पोस्ट खाद या गोबर की खाद का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. 

इसके अलावा मून की फसल के लिए 20 किलो नाइट्रोज और 50 किलो स्फुर का इस्तेमाल बीजों की बुवाई के समय करें. वहीं जिस क्षेत्र में पोटाश और गंधक की कमी है वहां 20 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पोटाश और गंधक देना फायदेमंद होता है.

कैसे करें खरपतवार नियंत्रण?

पहली निराई बुवाई के 25 से 30 दिनों के अंदर और दूसरी 35 से 40 दिनों में करनी चाहिए. मूंग की फसल की बुवाई के एक या फिर दो दिनों के बाद पेंडीमेथलीनकी की 3 लीटर मात्रा आधे लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें. जब फसल एक महीने की हो जाए तो उसकी गुड़ाई कर दें.

कैसे करें रोग और कीट नियंत्रण?

  • फसल को दीमग से बचाने के लिए बुवाई से पहले खेत में जुताई के वक्त क्यूनालफोस या क्लोरोपैरिफ़ॉस पाउडर की 25 किलो तक की मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला लें.
  • फसल की पत्तियों में अगर पीलापन नजर आए तो यह पीलिया रोग का संकेत होता है. इससे बचाव के लिए गंधक के तेज़ाब का छिड़काव करना अच्छा होता है.
  • कातरा नाम का कीट पौधों को शुरूआती अवस्था में काटकर बर्बाद कर देता है. इससे बचाव के लिए क्यूनालफोस 1.5 फीसद पाउडर की कम से 20 से 25 किलो मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से भुरक देनी चाहिए.
  • फसलों को तना झुलसा रोग से बचाने के लिए दो ग्राम मैकोजेब से प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचार करके बुवाई की जानी चाहिए. बीजों की बुवाई के एक महीने बाद दो किलो मैकोजेब प्रति हेक्टेयर की दर से कम से कम 5 सौ लीटर पानी घोलकर स्प्रे करना चाहिए.
  • फसलों को फली छेदक से बचाने के लिए मोनोक्रोटोफास कम से कम आधा लीटर 20 से 25 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से स्प्रे करना चाहिए.

कब सिंचाई की जरूरत?

मूंग की फसल को सिंचाई की जरूरत नहीं होती लेकिन लेकिन जायद के सीजन में फसल को 10 से 12 दिनों के अंतराल में कम से कम 5 बार सिंचाई की जरूरत होती है. मूंग की फसलों की सिंचाई के लिए उन्नत तकनीकों की मदद ली जा सकती है.

कैसे करें कटाई?

मूंग की फलियों का रंग जब हरे से भूरा होने लगे तब फलियों की कटाई करनी चाहिए. बाकी की बची हुई फसल को मिट्टी में जुताई करने से हरी खाद की जरूरत पूरी हो जाती है. 

अगर फलियां ज्यादा पक जाएंगी तो उनकी तुड़ाई करने पर उनके चटकने का डर रहता है. जिसकी वजह से फसल का उत्पादन कम होता है. मूंग की फसल के बीज का भंडारण करने के लिए उन्हें अच्छे से सुखा लेना चाहिए. 

बीज में 10 फीसद से ज्यादा नमी नहीं होनी चाहिए. अगर आप भी इन बातों का ख्याल रखते हुए मूंग की फसल की बुवाई करेंगे तो, यह आपके लिए फायदे का सौदा हो सकता है.

ग्रीष्मकाल में इस प्रकार से करें जायद मूंग की खेती, होगा बंपर उत्पादन

ग्रीष्मकाल में इस प्रकार से करें जायद मूंग की खेती, होगा बंपर उत्पादन

मूंग एक ऐसी फसल है जो खरीफ के साथ-साथ जायद में भी उगाई जाती है। इसे जायद या ग्रीष्मकालीन मूंग कहा जाता है। गर्मियों के समय में भी किसान मूंग की खेती करके अच्छी खासी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। अगर पिछले कुछ सालों की बात करें तो ग्रीष्मकाल में बुवाई के लिए मूंग की कई प्रकार की प्रजातियां विकसित की गई हैं। जिनमें भीषण गर्मी को सहन करने की क्षमता के साथ-साथ प्रमुख रोगों और कीटों से लड़ने के क्षमता भी विकसित की गई है। ये किस्में शीघ्र पकने वाली होती है तथा इनकी फलियां भी दूसरी किस्मों के मुकाबले बड़ी होती हैं। ये किस्में परंपरागत प्रजातियों की अपेक्षा 20% तक ज्यादा उत्पादन दे सकती हैं।

ग्रीष्मकाल में जायद मूंग की खेती

जायद मूंग की खेती के लिए इस प्रकार से करें खेत की तैयारी

रबी की खेती के बाद खेत में पड़ी नरवाई को आग न लगाएं। कटाई के ठीक बाद ट्रैक्टर की सहायता से
रोटावेटर को तीन से चार बार तक खेत में चलाएं। इससे नरवाई पूरी तरह से नष्ट हो जाएगी। इसके बाद खेत को 2 से 3 बार जुताई करें और जुताई के साथ ही पाटा का प्रयोग अवश्य करें। खेत में नमी से प्रबंधन के उपाय करें ताकि खेत पूरी तरह से सूखने न पाए और खेत की मिट्टी में नमी बरकरार रहे। जब मिट्टी भुरभुरी दिखने लगे तब खेत बुवाई के लिए तैयार है।

इस प्रकार से करें बीज की उन्नत किस्मों का चयन

वैसे तो बाजर में जायद मूंग की खेती के लिए बहुत सारी किस्में उपलब्ध हैं, लेकिन इस मौसम में बुवाई के लिए पूसा बैशाखी, पूसा विशाल, आई.पी.एम.  205-7 (विराट), एम.एच. 421, आई.पी.एम. 410-3 (शिखा), पी.डी.एम. 139 (सम्राट) किस्में ज्यादा अच्छी मानी जाती हैं। गर्मियों के समय मूंग की बुवाई के लिए एक हेक्टेयर में 30 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। इसी अनुपात से बुवाई के लिए बीज तैयार कर लें।

ऐसे करें मूंग की बुवाई

ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई मार्च के पहले सप्ताह से 15 अप्रैल के बीच की जाती है। इसकी खेती वहीं की जाती है जहां सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था हो। रबी की फसल के पकने के बाद 70 से 80 दिनों में पकने वाली मूंग की प्रजातियों की बुवाई की जा सकती है। इसके साथ ही जहां रबी की फसल देर से आई है वहां 60 से 65 दिनों में पकने वाली मूंग की किस्मों की बुआई किसान भाई बेहद आसानी से कर सकतें हैं। मध्य प्रदेश में नर्मदा घाटी के आसपास मूंग की बुवाई 31 मार्च तक कर देनी चाहिए। यह इस क्षेत्र में इसकी खेती के लिए बेहद उपयुक्त समय है। ये भी पढ़े: केंद्र सरकार की मूंग सहित इन फसलों की खरीद को हरी झंडी, खरीद हुई शुरू

इस प्रकार से करें खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

फसल में खाद एवं उर्वरक के प्रयोग से पहले मिट्टी की जांच जरूर करवा लें। बुवाई के समय नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश का प्रयोग किया जा सकता है। इसके साथ ही उत्पादन बढ़ाने के लिए राइजोबियम जैविक उर्वरक का भी प्रयोग किसान भाई कर सकते हैं। इसके प्रयोग से उत्पादन में लगभग 15% की वृद्धि हो सकती है। मूंग में उत्पादन लागत को कम करने के लिए फास्फेट घुलनशील जीवाणु का भी प्रयोग कर सकते हैं। इसकी सहायता से मृदा में उपस्थित अघुलनशील फास्फोरस की उपलब्धता को बढ़ाया जा सकता है।

इस प्रकार से करें सिंचाई का प्रबंधन

ग्रीष्मकालीन मूंग में सिंचाई बेहद आवश्यक है, नहीं तो फसल तुरंत ही सूख जाएगी। इस मौसम में फसल को बचाए रखने के लिए समान अवधि में कम से कम 4 बार सिंचाई अवश्य करें। इससे फसल का अच्छे से विकास होगा तथा उत्पादन तेजी से बढ़ सकता है।

इस प्रकार से करें ग्रीष्मकालीन मूंग में खरपतवार का नियंत्रण

तेज गर्मी के कारण इस फसल में खरपतवार का ज्यादा आक्रमण नहीं होता है। लेकिन फिर भी फसल के साथ ही कई प्रकार के खरपतवार उग आते हैं, जो फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे मूंग की पैदावार और गुणवत्ता कमजोर हो जाती है। इससे बचने के लिए बुवाई के 20-25 दिनों बाद निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को नष्ट कर दें। यदि निराई-गुड़ाई के लिए मजदूर नहीं मिल रहे रहे हैं तो खेत में शाकनाशी का प्रयोग कर सकते हैं। ये भी पढ़े: मूंग का भाव एमएसपी तक पहुंचाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार की कवायद शुरू

अन्य फसलों के साथ भी की जा सकती है मूंग की ग्रीष्मकालीन खेती

मूंग तेजी से उगने वाली फसल है, ऐसे में इसकी खेती अन्य फसलों के साथ सहफसली खेती के रूप में की जा सकती है। इससे अन्य फसल के ऊपर किसी भी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। मूंग की खेती को गन्ने के खेत में दो पंक्तियों के बीच आसानी से किया जा सकता है। इससे खरपतवार भी कम पनपते हैं और किसान का मुनाफा भी बढ़ता है।